কেদারনাথ সিং-এর কবিতা
অনুবাদ : দেবলীনা চক্রবর্তী
জুতো / কেদারনাথ সিং
সভা সমাপ্তির পর
পড়ে আছে জুতো
একলা নির্জন কোণে হতচকিত উদাস
দুটো ধূলোমাখা জুতো
মুখোমুখি, যার
নেই কোনো
উত্তরাধিকারী
চৌকিদার এসে দাঁড়িয়ে দেখল
অনেক্ষণ মুখোমুখি
সেই জুতোর সামনে
আর তাজ্জব হয়ে ভাবতে থাকল...
বক্তা চলে গেছে,
সমস্ত তর্ক-বিতর্কের শেষ হওয়ার পরেও
জুতো জোড়া পড়ে আছে
এই শূন্যতায় যেখানে
কেউ বলার আর শোনার নেই
তবু কত― কত
কিছু
নিঃশব্দে বলে গেলো জুতো জোড়া।
মূল কবিতা :-
जूते / केदारनाथ सिंह
सभा उठ गई
रह गए जूते
सूने हाल में दो चकित उदास
धूल भरे जूते
मुँहबाए जूते जिनका वारिस
कोई नहीं था
चौकीदार आया
उसने देखा जूतों को
फिर वह देर तक खड़ा रहा
मुँहबाए जूतों के सामने
सोचता रहा―
कितना अजीब है
कि वक्ता चले गए
और सारी बहस के अंत में
रह गए जूते
उस सूने हाल में
जहाँ कहने को अब कुछ नहीं था
कितना कुछ कितना कुछ
कह गए जूते
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এই পৃথিবী রয়ে যাবে / কেদারনাথ সিং
আমার বিশ্বাস আছে
এই পৃথিবীও থেকে যাবে
যদি আর কোথাও নাও থাকে
আমার হাড়ে-মজ্জায় বেঁচে থাকবে
অথবা রয়ে যাবে
গাছের বাকলে যেভাবে ঘুণ বাসা বাঁধে
অথবা ছোট্ট পোকা যেভাবে রয়ে যায়
দানায় দানায়
সেভাবেই এই পৃথিবীও ঠিক রয়ে যাবে
প্রলয়ের পরেও আমার মধ্যে
যদি আর কোথাও নাও থাকে
আমার শব্দে― আমার নশ্বরতায়
থেকে যাবে।
আর এক দিন জেগে উঠব আমি
এক পৃথিবী সমেত
আমি জেগে উঠব জল আর কাছিম হয়ে
আর ধীরে ধীরে এগিয়ে যাবো
সেই মিলন কাতরতার দিকে
যাকে নাকি কথা দিয়েছিলাম
যে আমাদের দেখা হবে।
মূল কবিতা :-
यह पृथ्वी रहेगी / केदारनाथ सिंह
मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में
यह रहेगी जैसे पेड़ के तने में
रहते हैं दीमक
जैसे दाने में रह लेता है घुन
यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अन्दर
यदि और कहीं नहीं तो मेरी ज़बान
और मेरी नश्वरता में
यह रहेगी
और एक सुबह मैं उठूंगा
मैं उठूंगा पृथ्वी-समेत
जल और कच्छप-समेत मैं उठूंगा
मैं उठूंगा और चल दूंगा उससे मिलने
जिससे वादा है
कि मिलूंगा।
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অন্ত / কেদারনাথ সিং
বন্ধুগন পরিশেষে এই কথাই বলব
যে,
অন্ত বা শেষ হলো শুধুমাত্র এক
সংলাপের প্রণালী
যেখানে শব্দ প্রতিনিয়ত নিজেকে ভাঙে
আর স্ফুরণের পর প্রতিবার
অবশিষ্ট পরে থাকে কাঁচা আদিম
এক তাল মাটির মতো
যেখান থেকেই আবার সব কিছুর
শুরু বা জন্ম
মূল কবিতা :-
अंत महज एक मुहावरा है / केदारनाथ सिंह
अंत में मित्रों,
इतना ही कहूंगा
कि अंत महज एक मुहावरा है
जिसे शब्द हमेशा
अपने विस्फोट से उड़ा देते हैं
और बचा रहता है हर बार
वही एक कच्चा-सा
आदिम मिट्टी जैसा ताजा आरंभ
जहां से हर चीज
फिर से शुरू हो सकती है
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হাত / কেদারনাথ সিং
তার হাত
আমার হাতের তালুতে নিয়ে ভাবলাম
পৃথিবীকেও
এই হাতের মতোই উষ্ণ ও সুন্দর হওয়া
উচিত।
মূল কবিতা :-
हाथ / केदारनाथ सिंह
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए
কান্না কতটা ভারী / কেদারনাথ সিং
কত লক্ষ চিৎকার
আর কত কোটি আর্ত বিলাপের পর
কোন এক চোখ থেকে
গড়িয়ে পড়া
অশ্রু বিন্দুর নাম হলো―
কান্না
কেউ কি বলতে পারে
আসলে কে কতটা ভারী
অশ্রু বিন্দু নাকি কান্না !
মূল কবিতা :-
आँसू का वजन / केदारनाथ सिंह
कितनी लाख चीख़ों
कितने करोड़ विलापों-चीत्कारों के बाद
किसी आँख से टपकी
एक बूंद को नाम मिला-
आँसू
कौन बताएगा
बूंद से आँसू
कितना भारी है
কবি পরিচিতি : কেদারনাথ সিং
১৯৩৪ সালে উত্তরপ্রদেশের চাকিয়া
গ্রামে তাঁর জন্ম। বেণারস থেকে স্নাতক হয়ে, কাশী হিন্দু বিশ্ববিদ্যালয় থেকে
স্নাতকোত্তর এবং পিএইচডি সম্পন্ন করেন।
কিছু সময় গোরখপুরে হিন্দি ভাষার
শিক্ষকতা এবং তারপর দিল্লি জহরলাল নেহেরু ইউনিভার্সিটিতে হিন্দি ভাষা ও সাহিত্যের
অধ্যাপনা করেন। ছোট্ট বয়স থেকেই কাব্যচর্চার শুরু। তিনি কবি হিসেবে পরিচিত হলেও
তিনি ছিলেন গদ্যকার ও সমালোচক।তার কবিতায় প্রথম ও প্রধান আকর্ষণ হলো সরল ভাষা
কিন্তু তার গভীর তাৎপর্য ।
কেদারনাথ সিংয়ের উল্লেখযোগ্য
কাব্যগ্রন্থগুলির মধ্যে রয়েছে, যহাঁ সে দেখো, অভি বিলকুল অভি, জমিন পাক
রহি হ্যায় ও বাঘ।
কাব্যগ্রন্থ 'অকাল মেঁ
সারস' কবি
হিসেবে তাঁকে জনপ্রিয়তা এনে দেয়। এই কাব্যগ্রন্থের জন্যই ১৯৮৯ সালে সাহিত্য আকাদেমি
পুরস্কার পান এবং এই কাব্যগ্রন্থের জন্যই ২০১৩-য় তাঁকে জ্ঞানপীঠ পুরস্কারেও
সম্মানিত করা হয়।
বিগত কয়েক দশক ধরে হিন্দি ভাষায়
কাব্যচর্চা করে অকুণ্ঠ ভালোবাসা পেয়েছেন। তাঁর অনুরাগীর সংখ্যাও কম নয়।এই হিন্দি
ভাষার জনপ্রিয় কবি পরলোকগমন করেন ২০১৮ সালের ১৯ মার্চ।
আজ তাঁর লেখা কয়েকটি উল্লেখ্যযোগ্য
হিন্দি কবিতার বাংলা তর্জমা করলাম।
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